बाख़बर

था मैंने जब भी चाहा,
हाल-ए-दिल सुनाऊँ तुझे,
थे जब भी मैंने बढ़ाए,
तेरी जानिब ये क़दम,
तू मुझसे दूर,
अकेला निकल गया था कहीं…
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उर्दू शाइरी की शब्दावली: रदीफ़

ग़ज़ल के हर शेर में क़ाफ़िये के बाद आने वाला वह समांत शब्द या शब्द समूह रदीफ़ कहलाता है जो मतले (ग़ज़ल का पहला शे’र) के दोनों मिसरों के अंत में आता है तथा अन्य अश’आर के दूसरी पंक्ति के अंत में आता है और पूरी ग़ज़ल में एक सा रहता है।
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उर्दू शाइरी की शब्दावली: क़ाफ़िया

ग़ज़ल में क़ाफ़िया शब्दों के उस समूह को कहते हैं जो मतले के दोनों मिसरों और हर शेर के दूसरे मिसरे में रदीफ से पहले आते हैं व समान ध्वनि से उच्चारित किये जाते हैं।
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बेदम शाह वारसी

मिरी दुनिया यहाँ से है मिरी दुनिया वहाँ तक है
ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है
ख़ुदा जाने हमारे इश्क़ की दुनिया कहाँ तक है
ख़ुदा जाने कहाँ से जल्वा-ए-जानाँ कहाँ तक है
अपने पसंदीदा शायर को उनके जन्मदिन पर याद करते हुए! … More बेदम शाह वारसी

नग़्म-ए-फ़ुर्क़त

यूँ महव-ए-रक़्स हैं अलफ़ाज़ मेरे गीतों के,
उसी पाज़ेब की रुमझुम का गुमाँ होने लगा… ये गुमशुदा नज़्म 6 जनवरी 1993 में लिखी गई थी – नब्बे के दशक की बेतरतीब चीज़ों को अब झाड़-पोंछ कर जाले उतारने का काम जारी है! … More नग़्म-ए-फ़ुर्क़त

ख़ौफ़-ए-हक़ीक़त

ये मायाजाल
महज़ ग़मों से है बुना,
और तो कुछ भी नहीं!

ये गुमशुदा नज़्म अप्रैल 1996 में लिखी गई थी – नब्बे के दशक की बेतरतीब चीज़ों को अब झाड़-पोंछ कर जाले उतारने का काम जारी है! … More ख़ौफ़-ए-हक़ीक़त