भूल भुलैयाँ
रेज़ा-रेज़ा
बिखरता जाए है
वुजूद अपना,
पुर्ज़ा-पुर्ज़ा
हुई जाये मेरी
किताब-ए-हयात,
… More भूल भुलैयाँ
रेज़ा-रेज़ा
बिखरता जाए है
वुजूद अपना,
पुर्ज़ा-पुर्ज़ा
हुई जाये मेरी
किताब-ए-हयात,
… More भूल भुलैयाँ
ये छोटी सी गुमशुदा नज़्म 18 अगस्त 1994 में लिखी गई थी – नब्बे के दशक की बेतरतीब चीज़ों को अब झाड़-पोंछ कर जाले उतारने का काम जारी है! … More ये आबशार
किसी भी शब्द के उच्चारण में
मूँह के भीतर जुबान का अलग-अलग
तरह से इस्तेमाल होता है जिस से
हवा विभिन्न तरीक़ों से दबाई जाती है!
उसी जगह को उस स्वर या व्यंजन
का उच्चारण स्थान कहते हैं ।
लफ़्ज़ों के सही उच्चारण से ही ज़ुबान की ख़ूबसूरती निखर कर आती है। … More तलफ़्फ़ुज़ – हिंदी वर्णों के उच्चारण स्थान
सफ़-ब-सफ़,
चाँद से मुझ तक
सभी तारे थे खड़े!
ये छोटी सी गुमशुदा नज़्म 26 जुलाई 1993 में लिखी गई थी – नब्बे के दशक की बेतरतीब चीज़ों को अब झाड़-पोंछ कर जाले उतारने का काम जारी है! … More अंजुमन
रंज की हद से गुज़र कर
मेरी भीगी आँखें,
एक मानूस सा चेहरा
तलाशने निकलीं…
… More साहिल
बड़ी मुद्दत के बाद आज फिर उठा है क़लम,
और सूखी थी सियाही जो,
मुस्कुराई है!
मगर फिर भी है बेबसी ऐसी,
वो सभी कुछ जो कहना चाहा सदा,
आज कागज़ पे उतारूँ कैसे? … More तर्क-ए-तअल्लुक़
बरसी तो थी मेरे लिए
नन्ही सी वो बदली,
कुछ दामन-ए-नसीम ने
बूँदें समेट लीं…
… More अश्क-ओ-गुहर
चले गए हैं छोड़ कर मेरे अल्फ़ाज़ मुझे,
अभी समेटना था उनमें कितना दर्द मझे,
हूँ डर रही कहीं रुस्वा ही न कर दें मुझको,
अब तो अश्कों की ज़ुबानी है बयाँ होने लगा… … More दर्द-ओ-अल्फ़ाज़
हाँ मैं पत्थर की मूरत हूँ
न साँस लेती,
न जीती हूँ
छूने लगते हो जब मुझे,
रोकती, न टोकती
बस एकटुक
पथराई आँखों से
निहारती हूँ तुमको… … More सज़ा-ए-मौत
औऱ तुम हो कि फिर खड़ी हो
अलसाई, धूप-तपा मुख लिए
एक नए झरने का कलरव सुनतीं
– एक घाटी की पूरी हरी गरिमा के साथ!
अपना तो हर दिन 🥰Mother’s Day🥰 है!!
… More माँ के लिए