ग़ज़ल के दोष: ऐब-ए-तनाफ़ुर

’ऐब’ या दोष एक ऐसी ख़राबी है जिसकी वजह से कोई ग़ज़ल बह्र में होते हुए भी मज़ा किरकिरा कर देती है।
आइए देखते हैं “जब भी” का जब्भी और
“राम मत” का राम्मत कैसे हो जाता है! … More ग़ज़ल के दोष: ऐब-ए-तनाफ़ुर

वीरान-ए-हयात

मेरे टूटे हुए ख़्वाबों के महल,
जहाँ तन्हाई जगा करती है,
और मुस्कुराहटों में लिपटे हुए,
न जाने कितने बेशुमार अश्क
सोते हैं,
रिहाई नारसा है जिनके लिए… … More वीरान-ए-हयात

शायरी में हाज़िर-जवाबी

“शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता जहाँ पर ख़ुदा नहीं”
“मस्जिद ख़ुदा का घर है, कोई पीने की जगह नहीं,
काफ़िर के दिल में जा, वहाँ पर ख़ुदा नहीं”
“काफ़िर के दिल से आया वहाँ पर जगह नहीं,
ख़ुदा मौजूद है वहाँ, काफ़िर को पता नहीं”

यहाँ चंद बिखरे हुए अशआ’र और टुकड़े यूँ जोड़े गए हैं जैसे वे शायरों और कवियों की हाज़िर-जवाबी का नतीजा हों,
मगर हक़ीक़त में सब अलग अलग दौर की शायरी है! … More शायरी में हाज़िर-जवाबी

बह्र: 2122 / 1212 / 112 या 2122 / 1212 / 22

जिस नियमित लय पर गज़ल कही जाती है उसे ही बह्र कहते हैं।
जैसे हिन्दी एवं संस्कृत की छंदोबद्ध कविता में विभिन्न छंदों का प्रयोग किया जाता है वैसे ही ग़ज़लें भी विभिन्न बहरों में कही जाती हैं।
आइए इस बह्र के बारे में कुछ जानकारी हासिल करें.. … More बह्र: 2122 / 1212 / 112 या 2122 / 1212 / 22

बह्र-ओ-वज़्न [कमलेश भट्ट ‘कमल’]

ग़ज़ल में वज़न एक अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व है जिसको समझे बिना ग़ज़ल को समझना लगभग असंभव है.
ग़ज़ल के लिए बहरों के नाम की जानकारी उतना मायने नहीं रखती जितना उनकी समझ होना। बिना बहरों की जानकारी के भी सही और सटीक ग़ज़ल लिखी जा सकती है। … More बह्र-ओ-वज़्न [कमलेश भट्ट ‘कमल’]

किसी की सलामती की दुआ

तेरे वादों की बिना पर
गवाँ दिया सब कुछ,
चंद लफ़्ज़ों की ही ख़ातिर
लुटा दिया सब कुछ!
मुझको इन मदभरे बेदार सितारों की क़सम,
मुझको उस शाख़ से टूटे हुए पत्तों की क़सम…
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इक खूबसूरत फिल्मी गीत – ये मेरी जिंदगी, इक पागल हवा

ये गीत मेरे बहुत प्रिय हैं – सुनिए और साथ गाइए क्यूंकि उनके लफ़्ज़ भी साथ लिखे हैं! … More इक खूबसूरत फिल्मी गीत – ये मेरी जिंदगी, इक पागल हवा