चाँद से मुतअल्लिक़-2

तुझे यक़ीन न हो,
झूठ पर नहीं कहती,


उफ़क़ के सामने हसीन इक
परी undefined रहती,

🥰🥰🥰🥰🥰


कभी अँजुम undefined का पहन
हार, फ़लक पर उतरे,

🥰🥰🥰🥰🥰

तो कभी बन के आफ़ताब, undefined
उजाला कर दे!

🥰🥰🥰🥰🥰
[उफ़क़ – क्षितिज; अँजुम – तारे; आफ़ताब

🥰🥰🥰🥰🥰
वर्तनी की कमियों के लिए माफ़ी!
कुछ
 और अपनी लिखी चीज़ें
[ग़ज़लें, नज़्में, मुक्तक वगैरह]
यहाँ देख सकते हैं:
क़लम के कलाम
🥰🥰🥰🥰🥰



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