तुझे यक़ीन न हो,
झूठ पर नहीं कहती,
उफ़क़ के सामने हसीन इक
परी रहती,
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कभी अँजुम का पहन
हार, फ़लक पर उतरे,
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तो कभी बन के आफ़ताब,
उजाला कर दे!
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[उफ़क़ – क्षितिज; अँजुम – तारे; आफ़ताब
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वर्तनी की कमियों के लिए माफ़ी!
कुछ और अपनी लिखी चीज़ें
[ग़ज़लें, नज़्में, मुक्तक वगैरह]
यहाँ देख सकते हैं:
क़लम के कलाम
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