कुछ पसंदीदा अशआ’र
जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे
ये याद रहे हम को बहुत याद करोगे!
साक़ी गई बहार रही दिल में ये हवस
तू मिन्नतों से जाम दे और मैं कहूँ कि बस!
तिरा ख़त आने से दिल को मेरे आराम क्या होगा
ख़ुदा जाने कि इस आग़ाज़ का अंजाम क्या होगा!
कौन किसी का ग़म खाता है
कहने को ग़म-ख़्वार है दुनिया!
ये तो नहीं कहता हूँ कि सच-मुच करो इंसाफ़
झूटी भी तसल्ली हो तो जीता ही रहूँ मैं!
‘सौदा’ जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
क्या जानिए तू ने उसे किस आन में देखा!
सौदा के इस शे’र में लफ़्ज़ “वो” और “उसे” का इशारा महबूब की तरफ़ है। शे’र के शाब्दिक मायनी तो ये हैं कि सौदा जो तेरा हाल है उतना वो यानी तेरे महबूब का नहीं है।समझ में नहीं आता कि तूने उसे किस वक़्त और किस कैफ़ियत में देखा है?
लेकिन जब दूर के मानी यानी भावार्थ पर ग़ौर करते हैं तो ख़याल की एक स्थिति उभरती है।उस स्थिति के दो पात्र हैं एक सौदा, दूसरा कलाम करने वाला, यानी सौदा से बात करने वाला।ये सौदा का कोई दोस्त भी हो सकता है या ख़ुद सौदा भी।
[मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी सौदा – 1713 – 26 Jun 1781]
कुछ ग़ज़लें
- अक़्ल उस नादाँ में क्या जो तेरा दीवाना नहीं / सौदा
- असबाब से जहाँ के कुछ अब पास गो नहीं / सौदा
- आदम का जिस्म जब के अनासर से मिल बना / सौदा
- आमाल से मैं अपने बहुत बेख़बर चला / सौदा
- आशिक़ की कहीं चश्मे-दुई बन न रहूँ मैं / सौदा
- आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें / सौदा
- आशिक़ तो नामुराद हैं पर इस क़दर कि हम / सौदा
- आह किस तरह तिरी राह मैं घेरूँ कि कोई / सौदा
- इस क़दर साद-ओ-पुरकार कहीं देखा है / सौदा
- इस चश्मे-ख़ूँचकाँ का अहवाल क्या कहूँ मैं / सौदा
- इस दिल के दे के लूँ दो जहाँ, ये कभू न हो / सौदा
- करती है मिरे दिल में तिरी जल्वागरी रंग / सौदा
- कहे है तौबा पे ज़ाहिद कि तुझको दीं तो नहीं / सौदा
- किया कलाम ये ‘सौदा’ से एक आक़िल ने / सौदा
- किसी का दर्दे-दिल प्यारे तुम्हारा नाज़ क्या समझे / सौदा
- कीजे न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को / सौदा
- कोनैन तक मिले थी जिस दिल की मुझको क़ीमत / सौदा
- ख़त आ चुका, मुझसे है वही ढंग अब तलक / सौदा
- खैंच शमशीर, चाव दिल के निकाल / सौदा
- गदा दस्त-ए-अहले-करम देखते हैं / सौदा
- ग़फ़लत में ज़िन्दगी को न खो गर शऊर है / सौदा
- गर तुझमें है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है / सौदा
- गर दम से जुदा तन को रखा देर हवा पर / सौदा
- गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का / सौदा
- ग़ैर के पास ये अपना है ग़ुमाँ है कि नहीं / सौदा
- चीज़ क्या हूँ जो करें क़त्ल वो अँखियाँ मुझको / सौदा
- जगह थी दिल को तिरे, दिल में इक ज़माना था / सौदा
- जब बज़्म में बुताँ की वो रश्के-मह गया था / सौदा
- जब मैं गया उसके तो उसे घर में न पाया / सौदा
- जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे / सौदा
- जी तक तो लेके दूँ कि तू हो कारगर कहीं / सौदा
- जो कि ज़ालिम है वो हरगिज़ फूलता-फलता नहीं / सौदा
- जो गुज़री मुझपे मत उससे कहो हुआ सो हुआ / सौदा
- टूटे तिरी निगह से अगर दिल हुबाब का / सौदा
- ढाया मैं तिरे काबे को, तैं मेरा दिल ऐ शैख़ / सौदा
- तबीअत से फ़रो-माया की शे’रे-तर नहीं होता / सौदा
- तुझ बिन ब-चमन हर-ख़सो-हर-ख़ार परीशाँ / सौदा
- तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बेतरह / सौदा
- दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जायेगा / सौदा
- दिल से पूछा ये मैं कि इश्क़ की राह / सौदा
- न अश्क आँखों से बहते हैं, न दिल से उठती हैं आहें / सौदा
- न क़स्दे-काबा है दिल में, न अज़्मे-दैर बंदा हूँ / सौदा
- न ग़ुंचे गुल के खुलते हैं, न नरगिस की खिली कलियाँ / सौदा
- न मुझसे कह कि चमन में बहार आई है / सौदा
- नातवाँ मुर्ग हूँ ऐ रुफ़्का-ए-परवाज़ / सौदा
- नावक तिरे ने सैद न छोड़ा ज़माने में / सौदा
- निकल न चौखट से से घर की प्यारे जो पट के ओझल ठिटक रहा है / सौदा
- नै बुलबुले-चमन न गुले-नौदमीदा हूँ / सौदा
- पाया वो हम इस बाग़ में जो काम न आया / सौदा
- फ़ख़्र मलबूस पर तू अपनी न कर ऐ मुनअम / सौदा
- बज़्मे-ग़म ख़ूने-जिगर पे मिरे मेहमान थी रात / सौदा
- बाज़े ऐसे भी हैं नामाक़ूल है जिनका सुखन / सौदा
- बात आवे न तो चुप रह कि गुमाँ के नज़दीक / सौदा
- बादशाहत दो जहाँ की भी जो होवे मुझको / सौदा
- बुलबुल ने जिसे जाके गुलिस्तान में देखा / सौदा
- बुलबुल, चमन में किसकी हैं ये बदशराबियाँ / सौदा
- मक़दूर नहीं उस तज्जली के बयाँ का / सौदा
- मतलब-तलब हुआ है दिल ऐ शैख़ो-बरहमन / सौदा
- मस्ते-सेहरो-तौबाकुने-शाम का हूँ मैं / सौदा
- मुलायम हो गयीं दिल पर बिरह की साइतें कड़ियाँ / सौदा
- याँ न ज़र्रा ही झमकता है फ़क़त गर्द के साथ / सौदा
- याँ सूरतो-सीरत से बुत कौन-सा ख़ाली है / सौदा
- राज़े-दिल फ़ाश किया मैंने मिरी साक़ी पर / सौदा
- लब-तिश्नगाने-जामे-तसलीम हम हैं साक़ी / सौदा
- वही है दिन, वही रातें, वही फ़ज़िर, वही शाम / सौदा
- वो हम नहीं जो करें सैरे-बोस्ताँ तनहा / सौदा
- शिकवा है दूर ज़ालिम करना मुरव्वतों से / सौदा
- सज्दा किया सनम को मैं दिल के कनिश्त में / सौदा
- समन्दर कर दिया नाम इसका सबने कह-कहकर / सौदा
- सावन के बादलों की तरह से भरे हुए / सौदा
- ‘सौदा’ गिरफ़्ता-दिल को न लाओ सुख़न के बीच / सौदा
- ‘सौदा’ से कहा मैंने, क्यों तुझसे न कहते थे / सौदा
- ‘सौदा’ से ये कहा मैं कुछ ज़िक्र कर किसी का / सौदा
- हम हैं वारस्ता मुहब्बत की मददगारी से / सौदा
- हर मिज़ा पर तेरे लख़्ते-दिल है इस रंजूर का / सौदा
- हर संग में शरार है तेरे ज़हूर का / सौदा
वर्तनी की कमियों के लिए माफ़ी माँगते हुए!
आभार: रेख़ता, कविता कोश
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