चिड़िया नहीं समझाती अपनी चहचह का अर्थ
बरगद बिना कुछ कहे सिर पर छाँव ओढ़ा देता है
अम्माँ से पूछ कर नहीं निकलतीं नदियाँ घर से
खिलखिलाहट पर फ़तवे लगाते हैं पंच सारे
प्रेम शब्द के उच्चारण में हकला जाती हूँ
चिट्ठियों में कुछ न पढ़ना
पढ़ना मेरा मन तुम्हारा नाम लिखने के ढंग में
क्या कहती हूँ
उसे सुनना ठीक वैसे ही
जैसे कैनवस सुनता है रंग को
🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰
[वर्तनी की कमियों की माफ़ी!]
आगे पढ़ें: बाबुषा
मेरी मनपसंद कविताएँ
मेरे मनपसंद शायर और कवि