नव रस (Navras)

[See in English: Navras & Beyond]
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परिचय

  1. रस का शाब्दिक अर्थ है – आनन्द। 
  2. कला में दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही रस कहलाता है।
  3. रस के जिस भाव से यह अनुभूति होती है कि वह स्थायी भाव होता है। 
  4. जब रस बन जाता है, तो भाव नहीं रहता, केवल रस रहता है। उसकी भावता अपना रूपांतर कर लेती है।
  5. भरत मुनि ने ‘नाट्यशास्त्र’ में शृंगार, रौद्र, वीर तथा वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अत: इन्हीं से अन्य रसों की उत्पत्ति बताई गई है:

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रस नौ हैं:

  1. वीर
  2. श्रृंगार
  3. करुण
  4. हास्य
  5. भयानक
  6. रौद्र
  7. वीभत्स
  8. अद्भुत
  9. इनमे जब शांत रस मिल जाता है तो इनकी संख्या 9 हो जाती है।

विद्वानों ने वात्सल्य और भक्ति रस को भी परिभाषित किया है पर इनका रसों में गिनती करना आज भी विवादित है। रस के अनुसार मनुष्य का बाहरी भाव बदलता रहता है।

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रस के चार अंग हैं:

स्थायी भाव:

  1. सहृदय के अंत:करण में जो मनोविकार वासना या संस्कार रूप में सदा विद्यमान रहते हैं तथा जिन्हें कोई भी विरोधी या अविरोधी दबा नहीं सकता, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं।
  2. ये मानव मन में बीज रूप में, चिरकाल तक अचंचल होकर निवास करते हैं।
  3. स्थायी भाव संस्कार या भावना के द्योतक हैं।
  4. ये सभी मनुष्यों में उसी प्रकार छिपे रहते हैं जैसे मिट्टी में गंध अविच्छिन्न रूप में समाई रहती है।
  5. स्थायी भाव इतने समर्थ होते हैं कि अन्य भावों को अपने में विलीन कर लेते हैं।
  6. इनकी संख्या 11 है:
    1. रति,
    2. हास,
    3. शोक,
    4. उत्साह,
    5. क्रोध,
    6. भय,
    7. जुगुप्सा,
    8. विस्मय,
    9. निर्वेद,
    10. वात्सलता और
    11. ईश्वर विषयक प्रेम।

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विभाव

  1. विभाव का अर्थ है कारण
  2. विभाव स्थायी भावों का विभावन/उद्बोधन करते हैं, उन्हें आस्वाद योग्य बनाते हैं।
  3. ये रस की उत्पत्ति में आधारभूत माने जाते हैं।
  4. विभाव के दो भेद हैं:
    • आलंबन विभाव:
      • जिन पात्रों के द्वारा रस निष्पत्ति सम्भव होती है।
      • जैसे: नायक और नायिका।
      • आलंबन के दो भेद होते हैं:
        • आश्रय: जिसमें किसी के प्रति भाव जागृत होते है।
        • विषय: जिसके प्रति भाव जागृत होते है।
        • जैसे रौद्र रस में परशुराम का लक्ष्मण पर क्रोधित होना। यहाँ परशुराम आश्रय और लक्ष्मण विषय हुए।
    • उद्दीपन विभाव:
      • विषय द्वारा की गईं क्रियाएं और वह स्थान जो रस निष्पत्ति में सहायक होते है।
      • उदाहरण:
        • शृंगार रस में नायक के लिए नायिका यदि आलंबन है तो उसकी चेष्टाए रति भाव को उद्दीपक करने के कारण उद्दीपक विभाव कहलाती है।
        • रति क्रिया के लिए उपयुक्त वातावरण जैसे चाँदनी रात, प्राकृतिक सुषमा, शांतिमय वातावरण आदि विषय उद्दीपक विभाव के अंतर्गत आते हैं,
        • वीर रस के स्थायी भाव उत्साह के लिए सामने खड़ा हुआ शत्रु आलंबन विभाव है। शत्रु के साथ सेना, युद्ध के बाजे और शत्रु की दर्पोक्तियां, गर्जना-तर्जना, शस्त्र संचालन आदि उद्दीपन विभाव हैं।
      • उद्दीपन विभाव के भी के दो प्रकार माने गये हैं:
        1. आलंबन-गत (विषयगत): आलंबन की उक्तियां और चेष्ठाएं।
        2. बाह्य-गत (बर्हिगत): वातावरण से संबंधित वस्तुएं। प्राकृतिक दृश्यों की गणना भी इन्हीं के अंर्तगत होती हैं।

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अनुभाव

  1. स्थायी भावों को प्रकाशित या व्यक्त करने वाली आश्रय की चेष्टाएं अनुभाव कहलाती हैं।
  2. ये चेष्टाएं भाव-जागृति के उपरांत आश्रय में उत्पन्न होती हैं इसलिए इन्हें अनुभाव कहते हैं, अर्थात जो भावों का अनुगमन करे वह अनुभाव कहलाता है।
  3. अनुभाव के दो भेद हैं
    • इच्छित और
    • अनिच्छित।

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संचारी भाव:

  1. संचारी शब्द का अर्थ है, साथ-साथ चलना अर्थात संचरणशील होना।
  2. संचारी भाव स्थायी भाव के साथ संचरित होते हैं, इनमें इतना सार्मथ्य होता है कि ये प्रत्येक स्थायी भाव के साथ उसके अनुकूल बनकर चल सकते हैं।
  3. इसलिए इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है।
  4. जो भाव केवल थोड़ी देर के लिए स्थायी भाव को पुष्ट करने के निमित्त सहायक रूप में आते हैं और तुरंत लुप्त हो जाते हैं, वे संचारी भाव हैं।
  5. संचारी या व्यभिचारी भावों की संख्या ३३ मानी गयी है

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३३ संचारी भाव

  1. निर्वेद,
  2. ग्लानि,
  3. शंका,
  4. असूया,
  5. मद,
  6. श्रम,
  7. आलस्य,
  8. दीनता,
  9. चिंता,
  10. मोह,
  11. स्मृति,
  12. धृति,
  13. व्रीड़ा,
  14. चापल्य,
  15. हर्ष,
  16. आवेग,
  17. जड़ता,
  18. गर्व,
  19. विषाद,
  20. औत्सुक्य,
  21. निद्रा,
  22. अपस्मार (मिर्गी),
  23. स्वप्न,
  24. प्रबोध,
  25. अमर्ष (असहनशीलता),
  26. अवहित्था (भाव का छिपाना),
  27. उग्रता,
  28. मति,
  29. व्याधि,
  30. उन्माद,
  31. मरण,
  32. त्रास और
  33. वितर्क।

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9 रस का संक्षिप्त परिचय

1 श्रृंगार रस (shringaar ras):

  1. स्थायी भाव: रति
  2. श्रृंगार रस को दर्शाने के लिए नर्तक:
    • अपने चेहरे पर सौंदर्य का भाव,
    • मुख पर ख़ुशी,
    • आँखों में मस्ती की झलक इत्यादि दर्शाता है।
  3. भारत मुनि के अनुसार जो कुछ भी शुद्ध, पवित्र, उत्तम और दर्शनीय है वही श्रृंगार रस है।
  4. इसके दो भेद माने जाते हैं:
    • संयोग श्रृंगार
    • वियोग श्रृंगार
  5. इस रस में कुछ फिल्मी गीत:

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2 वीर रस (veer ras):

  1. स्थायी भाव: उत्साह
  2. और नृत्य में इसे फड़कते हुए हाथ, आँखों में तेज और गर्व आदि भंगिमाओं से दर्शाया जाता है।
  3. इस रस के चार भेद माने जाते हैं:
    • धर्मवीर
    • दानवीर
    • युद्ध वीर और
    • दयावीर
  4. इस रस में कुछ फिल्मी गीत:

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3 हास्य रस (haasya ras):

  1. स्थायी भाव: हास
  2. हास्य रस ६ प्रकार का होता हैं:
    1. स्मित: जब हास्य आंखों के थोड़े से विकार से दर्शाते हैं
    2. हसित: अगर थोड़े से दांत भी दिखाई दें
    3. विहसित: अगर थोड़े मधुर शब्द भी निकले
    4. अवहसित: हँसते समय अगर कंधे और सर भी कांपने लगे
    5. अपहसित: इसके साथ यदि आंसू भी आ जाए
    6. अतिहसित: हाथ पैर पटक कर, पेट दबा कर हंसना

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4 करुण रस (karun ras):

  1. स्थायी भाव: शोक
  2. इसको दर्शाते हुए चेहरे पर शोक की झलक होती है और आँखों की दृष्टि नीचे गिरी हुई होती है।
  3. करुण रस मानव ह्रदय पर सीधा प्रभाव करता है।
  4. इस रस में कुछ फिल्मी गीत:

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5 अद्भुत रस (adbhut ras):

  1. स्थायी भाव: विस्मय या आश्चर्य
  2. इसे दर्शाने के लिए नर्तक अपने चेहरे पर आश्चर्य की भाव और आँखों को साधारण से ज्यादा खोलता है।
  3. इस रस में कुछ फिल्मी गीत:

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6 वीभत्स रस (vibhatsa ras):

  1. स्थायी भाव: घृणा, जुगुप्सा
  2. घृणा और ग्लानि से परिपुष्ट होकर वीभत्स रस बनता है।
  3. इसे दर्शाने के लिए नर्तक अपने चेहरे पर घृणा भाव लता है और नाक, भौं, मस्तिष्क सिकोड़ लेता है।
  4. इस रस में कुछ फिल्मी गीत:

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7 रौद्र रस (raudra ras)

  1. स्थायी भाव: क्रोध
  2. रौद्र रस में:
    • मुँह लाल हो उठता है
    • आँखें जलने लगती है,
    • दांतों के नीचे होठ एवं माथे पर वक्र रेखाएं नज़र आती हैं।
  3. इस रस में कुछ फिल्मी गीत:

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8 भयानक रस (bhayanak ras)

  1. स्थायी भाव: भय
  2. जब नर्तक इसे दर्शाता है तो उसके चेहरे पर भय, आँखें खुली हुई, भौएं ऊपर की ओर, शरीर स्थिर एवं मुँह खुला हुआ रहता है।
  3. इस रस में कुछ फिल्मी गीत:
    • Main apne aap se ghabra gaya hoon (Bindiya)
      • There is no supernatural here, no mythical horrifying creatures, but the horror is no less palpable. It’s the horror of a man waking up to his own crimes of omission or commission. He is horrified by himself and wants nothing but the oblivion of madness. Rafi plays it with restraint, letting the lyrics and the emotions of his voice speak out the horror and self-disgust plus the added incentive of seeing Balraj Sahni acting the horror-struck man onscreen.
    • Aasmaan Se Door Tara Ho Gaya – Darogaji (1949) – MD: Bulo C Rani, Lyrics – M L Khanna
      • Melancholy songs often try to capture this mood, with varied success. The heroine (played by Nargis) is dejected because she could not become one with the love of her life. She is sick and is extremely sad. She is identifying herself with a fallen star. The song moves and melts the heart of the listener.

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9 शांत रस (shant ras)

  1. स्थायी भाव: निर्वेद
  2. जब मानव सांसारिक सुख दुःख, चिंता आदि मनोविकारों से मुक्ति पा जाता है तो उसमे शांत रस की उत्पत्ति होती है।
  3. शांत रस दर्शाने के लिए:
    • चहरे पर स्थिरता,
    • आँख की दृष्टि नीचे की ओर, और
    • नाक, भौं एवं मस्तिष्क अपने स्वाभाविक स्थान पर होता है ।
  4. इस रस में कुछ फिल्मी गीत:

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[मूल लेख: Nav ras in kathak, रस (काव्य शास्त्र]

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वर्तनी की कमियों की माफ़ी!
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के बारे में आगे पढ़ें:
The Alchemy of Indian Classical Music

कुछ अन्य चीज़ें यहाँ देखें: 
स्कूल ऑफ अनलिमिटेड लर्निंग
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