- बह्र का नाम: बहरे मीर
- ये सबसे आसान और लचीली बहर है।
- इसमें सहूलियत ये है कि आप 22 की जगह 211 या 121 या 112 भी कर सकते हैं.
- इसे हिंदी के छंद और बह्र का मिश्रण माना जाता रहा है।
- अरूज़ के नियम न होने के बावजूद इस मात्रिक बहर को अपवाद के तौर पर अरूज़ की बहरों के साथ रखा गया है।
- सत्रहवीं शताब्दी से चली आ रही बह्र का सब से ज़्यादा इस्तेमाल मीर ने किया।
- मात्राएँ: 22 22 22 22 22 22 2
- इस बह्र में लिखी गई कुछ ग़ज़लें:
- पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है!
पत्ता/पत्ता/बूटा/बूटा/हाल ह/मारा/जाने/है
22 22 22 22 211 22 22 2
जाने न/ जाने/ गुल ही न/ जाने/ बाग़ तो/ सारा/ जाने/ है
211 22 211 22 211 22 22 2 - उल्टी /हो गईं/सब तद / बीरें/ कुछ न द /वा ने /काम कि/या
2 2 / 2 2 / 22 / 22 / 211 / 2 2 / 211 / 2
देखा /इस बी /मारी-ए-/दिल ने/आख़िर/ काम त/माम कि/या
2 2/ 22 / 2 1 1/ 22 / 22 / 21 1/ 21 1 /2
- पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
- ये भी देखें: मीर तक़ी मीर द्वारा इस्तेमाल की गई बह्रें और उनके उदहारण
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वर्तनी की कमियों की माफ़ी!
आगे पढ़ें:
बह्र की किस्में
बह्र क्या है
ग़ज़ल में तक़्तीअ कैसे करें
उर्दू ज़ुबान और शायरी से
जुड़ी कुछ अन्य चीज़ें:
उर्दू मैंने यूँ सीखी
मेरे मनपसंद शायर और कवि
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