कुछ पसंदीदा अशआ’र
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए
हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते
जफ़ा के ज़िक्र पे तुम क्यूँ सँभल के बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की
तिरे सिवा भी कहीं थी पनाह भूल गए
निकल के हम तिरी महफ़िल से राह भूल गए
रोक सकता हमें ज़िंदान-ए-बला क्या ‘मजरूह’
हम तो आवाज़ हैं दीवार से छन जाते हैं
ज़बाँ हमारी न समझा यहाँ कोई ‘मजरूह’
हम अजनबी की तरह अपने ही वतन में रहे
मुझ से कहा जिब्रील-ए-जुनूँ ने ये भी वही-ए-इलाही है
मज़हब तो बस मज़हब-ए-दिल है बाक़ी सब गुमराही है
दिल की तमन्ना थी मस्ती में मंज़िल से भी दूर निकलते
अपना भी कोई साथी होता हम भी बहकते चलते चलते
‘मजरूह’ क़ाफ़िले की मिरे दास्ताँ ये है
रहबर ने मिल के लूट लिया राहज़न के साथ
फ़रेब-ए-साक़ी-ए-महफ़िल न पूछिए ‘मजरूह’
शराब एक है बदले हुए हैं पैमाने
हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुम से ज़ियादा
चाक किए हैं हम ने अज़ीज़ो चार गरेबाँ तुम से ज़ियादा
तुझे न माने कोई तुझ को इस से क्या मजरूह
चल अपनी राह भटकने दे नुक्ता-चीनों को
‘मजरूह’ लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह
मुझे ये फ़िक्र सब की प्यास अपनी प्यास है साक़ी
तुझे ये ज़िद कि ख़ाली है मिरा पैमाना बरसों से
हम हैं का’बा हम हैं बुत-ख़ाना हमीं हैं काएनात
हो सके तो ख़ुद को भी इक बार सज्दा कीजिए
सैर-ए-साहिल कर चुके ऐ मौज-ए-साहिल सर न मार
तुझ से क्या बहलेंगे तूफ़ानों के बहलाए हुए
जला के मिशअल-ए-जाँ हम जुनूँ-सिफ़ात चले
जो घर को आग लगाए हमारे साथ चले
अब कारगह-ए-दहर में लगता है बहुत दिल
ऐ दोस्त कहीं ये भी तिरा ग़म तो नहीं है
पारा-ए-दिल है वतन की सरज़मीं मुश्किल ये है
शहर को वीरान या इस दिल को वीराना कहें
कहीं बेख़याल होकर, यूँ ही छू लिया किसी ने
कई ख़्वाब देख डाले, यहाँ मेरी बेखुदी ने
मेरे दिल मैं कौन है तू, कि हुआ जहाँ अन्धेरा
वहीं सौ दिये जलाये, तेरे रुख़ की चाँदनी ने
कभी उस परी का है कुछ, कभी इस हसीं की महफ़िल
मुझे दरबदर फिराया, मेरे दिल की सादगी ने
है भला सा नाम उसका, मैं अभी से क्या बताऊं
किया बेक़रार हँसकर, मुझे एक आदमी ने
अरे मुझ पे नाज़ वालों, ये नियाज़मन्दियां क्यों
है यही करम तुम्हारा, तो मुझे ना दोगे जीने
मुझे दर्द-ए-दिल का पता न था
मुझे आप किस लिए मिल गए
मैं अकेले यूँ ही मज़े में था
मुझे आप किस लिए मिल गए
यूँ ही अपने अपने सफ़र में गुम
कहीं दूर मैं कहीं दूर तुम
चले जा रहे थे जुदा जुदा
मुझे आप किस लिए मिल गए
न मैं चाँद हूँ किसी शाम का
न चराग़ हूँ किसी बाम का
मैं तो रास्ते का हूँ इक दिया
मुझे आप किस लिए मिल गए
संग्रह
कुछ रचनाएँ
- अदा-ए-तूल-ए-सुख़न क्या वो इख़्तियार करे
- अब अहल-ए-दर्द ये जीने का एहतिमाम करें
- अहल-ए-तूफ़ाँ आओ दिल-वालों का अफ़्साना कहें
- आबला-पा कोई गुज़रा था जो पिछले सन में
- आ निकल के मैदां में दोरुख़ी के ख़ाने से / मजरूह सुल्तानपुरी
- आ ही जाएगी सहर मतला-ए-इम्काँ तो खुला
- आख़िर ग़मे-ज़ाना को ऐ दिल बढ़ के ग़मे-दौराँ होना था / मजरूह सुल्तानपुरी
- आह-ए-जाँ-सोज़ की महरूमी-ए-तासीर न देख
- इस बाग़ में वो संग के क़ाबिल कहा न जाए
- कब तक मलूँ जबीं से / मजरूह सुल्तानपुरी
- ख़ंजर की तरह बू-ए-समन तेज़ बहुत है
- ख़त्म शोर-ए-तूफ़ाँ था दूर थी सियाही भी
- गो रात मेरी सुब्ह की महरम तो नहीं है
- चमन है मक़्तल-ए-नग़्मा अब और क्या कहिए
- जब हुआ इरफ़ाँ तो ग़म आराम-ए-जाँ बनता गया
- जल्वा-ए-गुल का सबब दीदा-ए-तर है कि नहीं
- जला के मशाल-ए-जान हम जुनूं सिफात चले / मजरूह सुल्तानपुरी
- जुनून-ए-दिल न सिर्फ़ इतना कि इक गुल पैरहन तक है
- जो समझाते भी आ कर वाइज़-ए-बरहम तो क्या करते
- जिस दम ये सुना है सुब्ह-ए-वतन महबूस फ़ज़ा-ए-ज़िंदाँ में
- डरा के मौज ओ तलातुम से हम-नशीनों को / मजरूह सुल्तानपुरी
- तक़दीर का शिकवा बे-मअ’नी जीना ही तुझे मंज़ूर नहीं
- दस्त-ए-पुर-ख़ूँ को कफ़-ए-दस्त-ए-निगाराँ समझे
- दस्त-ए-मुनइम मिरी मेहनत का ख़रीदार सही
- दुश्मन की दोस्ती है / मजरूह सुल्तानपुरी
- दूर दूर मुझ से वो इस तरह ख़िरामाँ है
- निगाह-ए-साक़ी-ए-ना-मेहरबाँ ये क्या जाने
- पहले सौ बार इधर और उधर देखा है / मजरूह सुल्तानपुरी
- ब-नाम-ए-कूचा-ए-दिलदार गुल बरसे कि संग आए
- मसर्रतों को ये अहले-हवस न खो देते / मजरूह सुल्तानपुरी
- मुझ से कहा जिब्रील-ए-जुनूँ ने ये भी वही-ए-इलाही है
- मुझे सहल हो गईं मंज़िलें वो हवा के रुख़ भी बदल गए
- मिरे पीछे ये तो मुहाल है कि ज़माना गर्म-ए-सफ़र न हो
- मैं खो गया यहीं कहीं
- यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं
- ये रुके रुके से आँसू ये दबी दबी सी आहें
- लिए बैठा है दिल इक अ़ज़्मे-बेबाकाना बरसों से / मजरूह सुल्तानपुरी
- वो जिस पे तुम्हें शम-ए-सर-ए-रह का गुमाँ है
- वो तो गया ये दीदा-ए-ख़ूँ-बार देखिए
- सिखाएँ दस्त-ए-तलब को अदा-ए-बे-बाकी
- सू-ए-मक़तल कि पए सैर-ए-चमन जाते हैं
- हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुम से ज़्यादा
- हमें शुऊर-ए-जुनूँ है कि जिस चमन में रहे
- हों, जो सारे दस्तो-पा हैं ख़ूं में नहलाए हुए / मजरूह सुल्तानपुरी
फ़िल्मों के लिए लिखे गीत
- आसमाँ के नीचे, हम आज अपने पीछे / मजरूह सुल्तानपुरी
- इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल / मजरूह सुल्तानपुरी
- इक लड़की भीगी भागी सी / मजरूह सुल्तानपुरी
- इतना हुस्न पे हुज़ूर न ग़ुरूर कीजिए / मजरूह सुल्तानपुरी
- इन बहारों में अकेले न फिरो / मजरूह सुल्तानपुरी
- इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा / मजरूह सुल्तानपुरी
- उठेगी तुम्हारी नज़र धीरे-धीरे / मजरूह सुल्तानपुरी
- ऐसे न मुझे तुम देखो, सीने से लगा लूँगा / मजरूह सुल्तानपुरी
- ओ मेरे दिल के चैन / मजरूह सुल्तानपुरी
- ओ मेरे सोना रे, सोना रे, सोना रे / मजरूह सुल्तानपुरी
- ओ हँसनी मेरी हँसनी, कहाँ उड़ चली / मजरूह सुल्तानपुरी
- ओ हसीना जुल्फ़ों वाली जाने जहाँ / मजरूह सुल्तानपुरी
- कभी आर कभी पार लागा तीर-ए-नज़र / मजरूह सुल्तानपुरी
- कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी / मजरूह सुल्तानपुरी
- कहीं करती होगी, वो मेरा, इंतज़ार / मजरूह सुल्तानपुरी
- कहीं बेख़याल होकर, यूँ ही छू लिया किसी ने / मजरूह सुल्तानपुरी
- कोई जब राह न पाए, मेरे सँग आए / मजरूह सुल्तानपुरी
- कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
- क्या हुआ तेरा वादा / मजरूह सुल्तानपुरी
- ख़्वाब हो तुम या कोई हकीकत / मजरूह सुल्तानपुरी
- गुम है किसी के प्यार में, दिल सुबह शाम / मजरूह सुल्तानपुरी
- चला जाता हूँ किसी की घुन में / मजरूह सुल्तानपुरी
- चलो सजना, जहाँ तक घटा चले / मजरूह सुल्तानपुरी
- चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे / मजरूह सुल्तानपुरी
- चुरा लिया है तुमने जो दिल को / मजरूह सुल्तानपुरी
- छलकाएँ जाम, आइए आपकी आँखों के नाम / मजरूह सुल्तानपुरी
- छोड़ दो आँचल जमाना क्या कहेगा / मजरूह सुल्तानपुरी
- जब तक रहे तन में जिया / मजरूह सुल्तानपुरी
- झुका-झुका के निगाहें मिलाए जाते हैं / मजरूह सुल्तानपुरी
- ठाढ़े रहियो ओ बाँके यार / मजरूह सुल्तानपुरी
- तुम बिन जाऊँ कहाँ / मजरूह सुल्तानपुरी
- तूने ओ रँगीले कैसा जादू किया / मजरूह सुल्तानपुरी
- तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है / मजरूह सुल्तानपुरी
- तेरी बिंदिया रे / मजरूह सुल्तानपुरी
- तेरे मेरे मिलन की ये रैना / मजरूह सुल्तानपुरी
- तौबा ये मतवाली चाल, झुक जाए फूलों की डाल / मजरूह सुल्तानपुरी
- दिल का भँवर करे पुकार, प्यार का राग सुनो / मजरूह सुल्तानपुरी
- दिल पुकारे, आरे आरे आरे / मजरूह सुल्तानपुरी
- दिल लेना खेल है दिलदार का / मजरूह सुल्तानपुरी
- दिलबर दिल से प्यारे / मजरूह सुल्तानपुरी
- दिल-विल प्यार-व्यार मैं क्या जानूँ रे / मजरूह सुल्तानपुरी
- दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ / मजरूह सुल्तानपुरी
- दुख हो या सुख, जब सदा संग रहे ना कोए / मजरूह सुल्तानपुरी
- नदिया किनारे हेराए आई कँगना / मजरूह सुल्तानपुरी
- पत्थर के सनम / मजरूह सुल्तानपुरी
- पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा / मजरूह सुल्तानपुरी
- पुकारता चला हूँ मैं / मजरूह सुल्तानपुरी
- फिर वही दिल लाया हूँ / मजरूह सुल्तानपुरी
- बहारें हमको ढूंढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे / मजरूह सुल्तानपुरी
- बाबूजी धीरे चलना / मजरूह सुल्तानपुरी
- माना जनाब ने पुकारा नहीं / मजरूह सुल्तानपुरी
- मुझे दर्द-ए-दिल का पता न था
- मीत ना मिला रे मन का / मजरूह सुल्तानपुरी
- मेरा तो जो भी कदम है / मजरूह सुल्तानपुरी
- मेरा तो जो भी कदम है, वो तेरी राह में है / मजरूह सुल्तानपुरी
- मिरे सामने वाली खिड़की में
- मेरी भीगी भीगे सी, पलकों पे रह गए / मजरूह सुल्तानपुरी
- यादों की बारात निकली है आज दिल के द्वारे / मजरूह सुल्तानपुरी
- ये दिल न होता बेचारा / मजरूह सुल्तानपुरी
- ये रातें ये मौसम नदी का किनारा / मजरूह सुल्तानपुरी
- ये है रेशमी जुल्फ़ों का अँधेरा न घबराइये / मजरूह सुल्तानपुरी
- रहते थे कभी जिनके दिल में / मजरूह सुल्तानपुरी
- रहें न रहें हम, महका करेंगे / मजरूह सुल्तानपुरी
- रात कली इक ख़्वाब में आई / मजरूह सुल्तानपुरी
- राही मनवा दुख की चिंता क्यूँ सताती है / मजरूह सुल्तानपुरी
- रुक जाना नहीं तू कहीं हार के / मजरूह सुल्तानपुरी
- रुला के गया सपना मेरा / मजरूह सुल्तानपुरी
- रुला के गया सपना मेरा / मजरूह सुल्तानपुरी
- रूठ के हमसे कहीं जब चले जाओगे तुम / मजरूह सुल्तानपुरी
- लागी छूटे ना अब तो सनम / मजरूह सुल्तानपुरी
- लूटे कोई मन का नगर बन के मेरा साथी / मजरूह सुल्तानपुरी
- लेकर हम दीवाना दिल / मजरूह सुल्तानपुरी
- लेके पहला पहला प्यार / मजरूह सुल्तानपुरी
- वादियाँ मेरा दामन / मजरूह सुल्तानपुरी
- वो जो मिलते थे कभी हम से दिवानों की तरह
- सलाम-ए-इश्क़ मेरी जाँ ज़रा क़ुबूल कर लो / मजरूह सुल्तानपुरी
- साथी न कोई मंज़िल / मजरूह सुल्तानपुरी
- हम आज कहीं दिल खो बैठे
- हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह / मजरूह सुल्तानपुरी
- हम हैं राही प्यार के, हमसे कुछ ना बोलिए / मजरूह सुल्तानपुरी
- हमराही जब हो मस्ताना / मजरूह सुल्तानपुरी
- हमसे का भूल हुई जो इ सजा हमका मिली / मजरूह सुल्तानपुरी
- हमें तुम से प्यार कितना, ये हम नहीं जानते / मजरूह सुल्तानपुरी
- हुई शाम उनका ख़याल आ गया / मजरूह सुल्तानपुरी
- है अपना दिल तो आवारा, न जाने किस पे आयेगा / मजरूह सुल्तानपुरी
- होठों में ऐसी बात मैं दबा के चली आई / मजरूह सुल्तानपुरी
[कुछ वर्तनी की कमियों के लिए माफ़ी माँगते हुए]
आगे पढ़ें: मेरे मनपसंद शायर और कवि
मज़रूह ज़नाब जयपुर के थे ,बाद में बम्बई चले गये।अर्ज किया-“ये महब़ूबा कुछ इस कदर ज़फ़ा का नाम हुई;कि सुबह से चले हमकदम शाम हुई……”आप भी लिखीये ना कुछ दिल को छूने वाली नज़्म🌷
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